नाटक एक पत्रकार के परिवार की कहानी
नाटक एक पत्रकार के परिवार की कहानी
विशोत्सव में नाटक ‘चारुलता’ की प्रस्तुति में झलका एक लेखक का दर्द
पटना- पटना रंगमंच की गतिविधि बिहार में सबसे सशक्त माना जाता है और यहाँ के रंगकर्मी भी मजे हुए होते हैं| शनिवार को पटना के कालिदास रंगालय में इन दिनों नाट्य महोत्सव हो रहा है जिसमें हर दिन एक से एक नाटक का मंचन देखनो को मिलता है | शनिवार को नाटक चारुलता का मंचन किया गया जो रविन्द्रनाथ टैगोर की बांगला कहानी का हिंदी रूपांतरण था |प्रस्तुत नाटक ‘चारुलता’ का बेहतरीन प्रदर्शन देखने को मिला जो पटना की मशहूर नाट्य संस्था प्रांगन की प्रस्तुति थी और निर्देशन एवं मुख्य पात्र चारुलता की भूमिका में सोमा चक्रवर्ती थी। प्रस्तुत नाटक में एक पत्रकार परिवार की कहानी थी जिसमें साहित्य, प्रेम, उदगार, प्रतिभा, ईर्ष्या के साथ विछुरण का पीड़ा देखने को मिला। कथासार , नाटक - चारुलता
भूपति एक अखबार का मालिक है, जिसकी सहायता उसका साला उमापति करता है। व्यस्त भूपति अपनी पत्नी चारुलता को पर्याप्त समय नहीं दे पाता, इसलिए वह उमापति की पत्नी मंदा को बुलावा लेता है और अपने भाई अमल को चारुलता को पढ़ाने के लिए कह देता है। अमल और चारुलता हमउम्र हैं और दोनों एक-दूसरे की साहित्यिक समझ से प्रभावित हैं। अमल चारुलता की रचनाओं को पत्रिकाओं में छपवाता है, जिसे चारुलता को तो खूब प्रशंसा मिलती है, जबकि अमल की रचनाओं की उसमें आलोचना होती है। चारुलता यह सब पढ़कर गंभीर हो जाती है, जिसे अमल उसका दंभ समझ लेता है और उससे ईष्यालु होकर वह मंदा के पास समय व्यतीत करने लगता है। चारुलता को अमल का यह व्यवहार अच्छा नहीं लगता और वह भूपति से मंदा को वापस भेजने और अमल का शीघ्र विवाह करने के लिए कहती है। मंदा के प्रति चारुलता के इस रुख से अमल क्रोधित होता है और विवाह के लिए तैयार हो जाता है। अमल की शादी हो जाती है और वह पढ़ाई के लिए विदेश चला जाता है। विदेश जाने के बाद अमल की कोई चिट्ठी या खोज-खबर चारूलता को नहीं मिलती और वह बीमार हो जाती है। भूपति चारुलता के अमल को लेकर हो रही चिंता को दूर करने का यत्न करता है, पर सफल नहीं होता। कहीं-ना-कहीं उसे चारुलता के मन में अमल के प्रति हो रही अतिशय चिंता से उसपर शक भी होने लगता है। इस बीच भूपति का साला उमापति अखबार के हिसाब-किताब में हेर-फेर कर देता है, जिससे भूपति को भारी घाटे के बीच अखबार बंद करना पड़ता है। थोड़े दिनों बाद ही उसके पास मैसूर से निकलने वाले अखबार में काम करने का प्रस्ताव मिलता है और वह जाने के लिए तैयार हो जाता है। चारुलता भूपति के साथ जाना चाहती है, लेकिन वह उसे मना कर देता है। चारुलता अत्यंत दुखी होती है। उसके दुख को देख कर भूपति उसे साथ चलने के लिए कहता है, तब चारुलता उसके साथ जाने से यह कहकर इंकार कर देती है कि “वह पुरुष के निर्णय पर आश्रित नहीं है। उसे भी ‘ना’ कहने का अधिकार है”।
अमलेश आनंद, पटना
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